Tuesday 13 January 2015

आपने अक्सर देखा होगा कि.....

आपने अक्सर देखा होगा कि.....

घरों और मंदिरों में पूजा के बाद पंडित जी हमारी कलाई पर लाल रंग का कलावा या मौली बांधते हैं.... और, हम मेंसे बहुत से लोग बिना इसकी जरुरत को पहचाते हुए इसे हाथों में बंधवा लेते हैं...।

सिर्फ इतना ही नहीं... बल्कि, .... आजकल पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित अंग्रेजी स्कूलों मेंपढ़े लोग .... मौली बांधने को एक ढकोसला मानते हैं .... और, उनका मजाक उड़ाते हैं...! हद तो ये हैकि..... कुछ लोग मौली बंधवाने में अपनी आधुनिक शिक्षा का अपमान समझते हैं .... एवं, मौली बंधवाने से उन्हें ... अपनी सेक्यूलरता खतरे में नजर आने लगती है...!

परन्तु , मैं आपको एक बार फिर से ये याद दिला दूँ कि..... एक पूर्णतयावैज्ञानिक धर्म होने के नाते ......हमारे हिंदूसनातन धर्म की कोई भी परंपरा...... बिना वैज्ञानिक दृष्टि से हो कर नहीं गुजरता... और. हाथ में मौली धागा बांधने के पीछे भी एक बड़ावैज्ञानिक कारण है...!

दरअसल.... मौली का धागा कोई...... ऐसा- वैसा धागा नहीं होता है..... बल्कि, यह कच्चे सूत से तैयार किया जाता है..... और, यह कई रंगों जैसे, लाल,काला, पीला अथवा केसरिया रंगों में होती है। मौली को लोग साधारणतया लोग हाथ की कलाई में बांधते हैं...! और, ऐसा माना जाता है कि ..... हाथ में मौली का बांधने से मनुष्य को ....... भगवान ब्रह्मा, विष्णु व महेश तथा तीनों देवियों- लक्ष्मी, पार्वती एवं सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है...। कहा जाता है कि ....हाथ में मौली धागा बांधने से मनुष्य बुरी दृष्टि से बचा रहता है...... क्योंकि.... भगवान उसकी रक्षा करते हैं...! और, इसीलिए कहा जाता है ... क्योंकि.... हाथों में मौली धागा बांधने से ... मनुष्य के स्वास्थ्य में बरकत होती है... कारण कि, इस धागे को कलाई पर बांधने से शरीर में..... वात,पित्त तथा कफ केदोष में सामंजस्य बैठता है। तथा, ये सामंजस्य इसीलिए हो पाता हैं क्योंकि...... शरीर की संरचना का प्रमुख नियंत्रण हाथ की कलाई में होता है (आपने भी देखा होगा कि .. डॉक्टर रक्तचाप एवं ह्रदय गति मापने के लिए कलाई के नस का उपयोग प्राथमिकता से करते हैं)...... इसीलिए.... वैज्ञानिकता के तहत .... हाथ में बंधा हुआ मौली धागा .... एक एक्यूप्रेशर की तरहकाम करते हुए..... मनुष्य को रक्तचाप, हृदय रोग,मधुमेह और लकवा जैसे गंभीर रोगों से काफी हद तक बचाता है.. एवं, इसे बांधने वाला व्यक्ति स्वस्थ रहता है। और, हाथों के इस नस और उसके एक्यूप्रेशर प्रभाव को हमारे ऋषि-मुनियों ने हजारों -लाखों साल पहले जान लिया था! परन्तु हरेक व्यक्ति को एक-एक कर हर बात की वैज्ञानिकता समझाना संभव हो नहीं पाता.... इसीलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने गूढ़ से गूढ़ बातों को भी हमारी परम्परों और रीति- रिवाजों का हिस्सा बना दिया ताकि, हम जन्म-जन्मांतर तक अपने पूर्वजों के ज्ञान-विज्ञान से लाभान्वित होते रहें...!

जानो,समझो और अपने आपको पहचानो हिन्दुओं हम हिन्दू उस गौरवशाली सनातन धर्म का हिस्सा हैं..... जिसके एक-एक रीति- रिवाजों में वैज्ञानिकता रची- बसी है...! जय महाकाल...!!!

*नोट : शास्त्रों के अनुसार पुरुषों एवं अविवाहित कन्याओं को दाएं हाथ में , एवं विवाहित स्त्रियों के लिए बाएं हाथ में मौलीबांधने का नियम है। कलावा बंधवाते समय जिस हाथ में कलावा बंधवा रहे हों ....उसकी मुठ्ठी बंधी होनी चाहिए.... और, दूसरा हाथ सिर पर होना चाहिए।

4 comments:

  1. Interesting piece of information... Keep it up!!!

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    1. Its all my pleasure to share some of my curiosity that is cultivating in my mind :D
      Thank you brother

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  2. mauli k baare me btaqne k liye shukriya...
    Kuch cheezon ka arth hume pta nhi hota h par hum unhe be-mann se ya aise hi krte h... par jab cheezon ka asli arth pta chalta h tab hum cheezon ko khushi khushi or smjh k krte h... jo ki hume antar-mann ki khushi dete h
    Thnkuuu Mr. Shukla
    :)
    (y)

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    1. Thank you Miss Agarwal for your precious comment I am delighted that you anterman is delighted by knowing scientific point of view about mauli/kalava.

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